कारगिल श्रंखला समापन चार वीरों की शौर्य गाथाओं के साथ

कारगिल श्रंखला समापन चार वीरों की शौर्य गाथाओं के साथ

कारगिल, साठ दिनों की वो दास्तां जिसने पूरी दुनिया को बता दिया कि भारत के ऊपर आँख उठा कर देखने वालों को उखाड़ फेंकना हमें आता है और यह भी सिद्ध कर दिया कि “औरों के घर आग लगाने का सपना, सदा अपने ही घर में हरा होता है”।

स विहंगम और भीषण घमासान ने वीरता की अनेकों दास्तानें दी। आज इस श्रृंखला के अंत में कारगिल युद्ध के 4 वीरों की शौर्य गाथाएं आप सब तक पहुंचा रही हूँ।

कह गया वो आखिरी पलों में,मेरे बिना बिखर न जाना
यू तो फिजाओं में लहरायेंगे हमेशा,तिरंगा हवा बन कर
बस तुम उस माँ के दर्द को देख बिफर न जाना।

नाम : कैप्टन अनुज नायर
जन्म : 28 अगस्त, 1975 दिल्ली
शहीद हुए : 7 जुलाई, 1999 (24 वर्ष)
यूनिट : 17 जाट रेजीमेंट
मरणोपरांत महावीर चक्र

शौर्य गाथा: इंडियन मिलिट्री एकेडमी से पासआउट होने के बाद जून, 1997 में जाट रेजिमेंट की 17वीं बटालियन में भर्ती हुए। कारगिल युद्ध के दौरान उनका पहला अभियान था प्वाइंट 4875 पर कब्जा करना। यह चोटी टाइगर हिल की पश्चिमी ओर थी और सामरिक लिहाज से बेहद जरूरी। इसपर कब्जा करना भारतीय सेना की प्राथमिकता थी। अभियान की शुरुआत में ही नैयर के कंपनी कमांडर जख्मी हो गए। हमलावर दस्ते को दो भागों में बांटा गया। एक का नेतृत्व कैप्टन विक्रम बत्रा ने किया और दूसरे का कैप्टन अनुज ने। कैप्टन अनुज की टीम में सात सैनिक थे, जिनके साथ मिलकर उन्होंने दुश्मन पर चौतरफा वार किया।

कैप्टन अनुज ने अकेले नौ पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया और तीन दुश्मन बंकर ध्वस्त किए। चौथे बंकर पर हमला करते समय दुश्मन ने उनकी तरफ रॉकेट से चलने वाली ग्रेनेड फेंका जो सीधा उनपर गिरा। बुरी तरह जख्मी होने के बाद भी वे बचे हुए सैनिकों का नेतृत्व करते रहे। शहीद होने से पहले उन्होंने आखिरी बंकर को भी तबाह कर दिया। दो दिन बाद दुश्मन सेना ने फिर से चोटी पर हमला किया जिसका जवाब कैप्टन विक्रम बत्रा की टीम ने दिया। कैप्टन नायर को मरणोपरांत महावीर चक्र प्रदान किया गया।

नाम : कैप्टन नीकेजाकुओ कैंगुरूसे
जन्म: 15 जुलाई, 1974 नरहेमा, कोहिमा जिला, नगालैंड
शहीद हुए : 28 जून, 1999
यूनिट : 2 राजपूताना राइफल
मरणोपरांत महावीर चक्र

शौर्य गाथा: 12 दिसंबर, 1998 में सेना में भर्ती हुए। जब कारगिल युद्ध शुरू हुआ, वे राजपूताना रायफल बटालियन में जूनियर कमांडर थे। उनकी दृढ़ता और दिलेरी के कारण उन्हें अपनी बटालियन के घातक प्लाटून का नेतृत्व सौंपा गया। 28 जून की रात कैप्टन कैंगुरूसे के प्लाटून को ब्लैक रॉक नामक टीले से दुश्मन को खदेड़ने की जिम्मेदारी मिली। टीले पर चढ़ाई के दौरान ऊपर से दुश्मन के लगातार हमले में कई सैनिक शहीद हुए और खुद कैप्टन को कमर में गोली लगी, लेकिन वे रुके नहीं।

ऊपर पहुंचकर वे एक पत्थर की आड़ में टीले के किनारे लटके रहे। 16,000 फीट ऊंचाई और -10 डिग्री तापमान में बर्फ पर लगातार उनके जूते फिसल रहे थे। लौटकर नीचे आना ज्यादा आसान था, लेकिन वे अपने जूते उतारकर नंगे पैर टीले पर चढ़े और आरपीजी रॉकेट लांचर से सात पाकिस्तानी बंकरों पर हमला किया। दो दुश्मनों को कमांडो चाकू से मार गिराया और दो को अपनी रायफल से। दुश्मनों की गोलियों से छलनी होकर वे टीले से नीचे आ गिरे, लेकिन इतना कर गए कि उनके प्लाटून ने टीले पर कब्जा कर लिया। इस दिलेरी के लिए उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।

नाम : हवलदार यश वीर सिंह तोमर
जन्म: 04 जनवरी, 1960 सिरसाली, उत्तर प्रदेश
शहीद हुए : 13 जून, 1999
यूनिट : 2 राजपूताना राइफल
मरणोपरांत वीर चक्र

शौर्य गाथा: कारगिल युद्ध के दौरान 18 ग्रेनेडियर्स को तोलोलिंग चोटी पर कब्जा करने का निर्देश मिला। ग्रेनेडियर्स के कई विफल प्रयासों के बाद राजपूताना रायफल की दूसरी बटालियन को हमले के लिए आगे किया गया। ग्रेनेडियर्स ने तीन प्वाइंट से राजपूताना को कवर दिया। मेजर विवेक गुप्ता के नेतृत्व में 90 सैनिक अंतिम हमले के लिए आगे बढ़े। इसी पलटन में यश वीर भी शामिल थे। यह पलटन प्वाइंट 4950 को अपने कब्जे में लेने के आखिरी चरण में थी।

12 जून को पाकिस्तान की तरफ से भारी गोलाबारी के बीच जब भारतीय सैनिक एक एक कर शहीद हो रहे थे, तो हवलदार यश वीर सिंह ने ग्रेनेड लेकर पाकिस्तानी बंकरों पर धावा बोला। उन्होंने बंकरों पर 18 ग्रेनेड फेंके और दुश्मनों को मार गिराया। उनके साहस को देखकर दुश्मनों के छक्के छूट गए। उनके पैर उखड़ने शळ्रू ही हुए थे कि इस दौरान वे गंभीर रूप से जख्मी हुए और शहीद हो गए। जब उनका शरीर मिला तो उसके एक हाथ में रायफल और दूसरे में ग्रेनेड थे। तोलोलिंग फतह करने में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा। उन्हें मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया

नाम : मेजर राजेश सिंह अधिकारी
जन्म: 25 दिसंबर, 1970 नैनीताल, उत्तराखंड
शहीद हुए : 30 मई, 1999 (उम्र 28 वर्ष)
यूनिट : 18 ग्रेनेडियर्स
मरणोपरांत वीर चक्र

शौर्य गाथा: इंडियन मिलिट्री एकेडमी से 11 दिसंबर, 1993 को सेना में भर्ती हुए। कारगिल युद्ध के दौरान 30 मई को उनकी यूनिट को 16,000 फीट की ऊंचाई पर तोलोलिंग चोटी पर कब्जा करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। यह पोजीशन भारतीय सेना के लिए बेहद अहम थी क्योंकि यहीं पर भारतीय सेना बंकर बनाकर टाइगर हिल पर बैठे दुश्मनों पर निशाना साध सकती थी। जब मेजर अधिकारी अपने सैनिकों के साथ लक्ष्य की ओर बढ़ रहे थे तो दुश्मनों ने दो बंकरों से उनपर हमला करना शुरू किया।

12 जून को पाकिस्तान की तरफ से भारी गोलाबारी के बीच जब भारतीय सैनिक एक एक कर शहीद हो रहे थे, तो हवलदार यश वीर सिंह ने ग्रेनेड लेकर पाकिस्तानी बंकरों पर धावा बोला। उन्होंने बंकरों पर 18 ग्रेनेड फेंके और दुश्मनों को मार गिराया। उनके साहस को देखकर दुश्मनों के छक्के छूट गए। जब उनका शरीर मिला तो उसके एक हाथ में रायफल और दूसरे में ग्रेनेड थे। तोलोलिंग फतह करने में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा। उन्हें मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया।

यह जीत सदियों तक “कारगिल विजय” दिवस के रूप में मनाई जाती रहेगी और वीरों के बलिदान की अमर‌ गाथाएं विश्व-पटल पर अमरत्व के शिलालेख पर उत्कीर्ण रहेगी।

” हर कतरा मैं खून का भारत भू की रक्षा में समर्पित करता हूं,
मातृभूमि की रक्षा खातिर, यह जान बलिवेदी पर रखता हूं।
वीरों ने यह शहादत दे अपना कर्ज चुकाया है,
अमर शहादत दे भूमि को,पावन अमरत्व कमाया है।

“एक नहीं, दो नहीं, करो बीसों समझौते,
पर स्वतंत्र भारत का मस्तक नहीं झुकेगा”।

पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी द्वारा रचित कविता की यह पंक्तियां, कारगिल के युद्ध में मातृभूमि की रक्षा के खातिर प्राण न्यौछावर करने वाले जवानों की अमर शहादत को एक गौरवमयी श्रद्धांजलि सी प्रतीत होती है।

Thank u Incredible Warriors for your duty! We all are indebted to you. RESPECT AND SALUTE!

जय हिंद।
जय हिंद की सेना!
जय भारत!

साभार एवं सधन्यवाद

Sqn Ldr Rakhi Agarwal

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