बप्पा रावल

बप्पा रावल

◆||कालभोज||◆

एक राजपूत बालक की गाय रोज दूध दुहने के समय कहीं चली जाती थी। उस बालक को रोज भूखा रहना पड़ता था इसलिए एक दिन वो उस गाय के पीछे पीछे गया। गाय एक ऋषि के आश्रम में पहुंची और एक शिवलिंग पर अपने दूध से अभिषेक करने लगी। बालक को बड़ा आश्चर्य हुआ ये क्या चक्कर है तभी उसने देखा उसके पीछे एक ऋषि खड़े मुस्कुरा रहे है। ऋषि का नाम था “हरित ऋषि” उन्होंने उस बालक को शिक्षा दीक्षा दी और उनके आशीर्वाद से उन्होंने ७३४ ईस्वी में मनमोरी नामक मौर्य सम्राट को चितौड़ में हराकर अपनी शाख बढ़ाई …!
इस बालक का नाम था कालभोज जिसे सब बप्पा रावल के नाम से जानते थे, हरित ऋषि के आशीर्वाद से बप्पा महादेव के बहुत बड़े भक्त हुए। उनकी धर्म मे इतनी रुचि थी कि जहां भी धर्म पर आघात होते वही पर बप्पा का कहर टूटता और उस जगह को पुनः सनातन में मिला कर भगवा लहराते …!
७१२ ईस्वी में जब मोहम्मद क़ासिम ने राजा दाहिर को छल से मार दिया तो उसने सिंध में इस्लाम की सत्ता लहरा दी, मगर ये ज्यादा दिन तक नही रहा। बप्पा रावल उनपर रुद्र बनके टूटे और मुहम्मद कासिम को उस समय के ख़लीफ़ा ने वापस बुलाया, बुलाया क्या मुहम्मद क़ासिम को भागना पड़ा …!
मगर इस्लाम के शासकों को चैन कहाँ था उन्होंने दो तरफ से मेवाड़ पर हमला बोला। अबकी बार बप्पा रावल ने कहर मचा दिया उन्होंने ऐसी मारकाट मचाई की इस्लाम के इन आक्रमणकारियों ने इतिहास में भी कभी नही सुनी थी। दूसरी तरफ से गुर्जर प्रतिहार वंश के नागभट्ट प्रथम ने उनको दक्षिण पश्चिमी राजस्थान की तरफ से दौड़ा दौड़ा कर मारा …!
फिर बप्पा रावल ने एक ऐसा काम किया कि अगले ४०० साल तक अरब और इस्लामी शासकों ने भारत की तरफ मुंह उठाकर भी नही देखा। उन्होंने छोटे मोटे सरदारों और नागभट्ट प्रथम व विक्रमादित्य द्वितीय के साथ मिलकर एक हिन्दू सेना का निर्माण किया। इस सेना ने अरब के अल हकम बिन अलावा, तामिम बिन जैद अल उतबी, अब्दुलरहमान अल मूरी की ऐसी खटिया खड़ी की कि इस्लामी शासक बप्पा रावल के नाम से भी थर थर कांपने लगे ..!
बप्पा यही नही रुके उन्होंने गजनी के शासक सलीम को बुरी तरह हराया, और अपने भतीजे को वहां की गद्दी पर बिठा आये। अरबी शासकों ने गजवा- ए – हिन्द के सपने को सपना ही मान लिया। गांधार, तुरान, खुरासान और ईरान तक अपनी सत्ता का परचम लहराया और वहां भगवा राज कायम किया। उनके डर से २५ मुस्लिम शासकों ने अपनी लड़कियों का ब्याह उनसे कर दिया था ..!
७१३ ईस्वी में जन्मे बप्पा रावल ने लगभग १९-२० साल शासन के बाद सन्यास ले लिया। ९७ वर्ष की आयु में उन्होंने इस संसार को त्याग दिया। उनके चलाये सिक्के पर नन्दी व शिवलिंग का चित्र था और त्रिशूल के साथ पुरुष आकृति। आज भी भारत के समग्र इतिहास में यदि हम खोजे तो ऐसा कोई योद्धा नही मिलता जिसने इस्लाम शासकों को इस तरह घुटनों के बल लाया हो कि वे ४०० साल तक उस बप्पा के कहर के डर से भारत की तरफ आंख उठा कर भी नही देख पाए हो ..!

बप्पा रावल के नाम से बसा रावलपिंडी आज भी पाकिस्तान की छाती पर खड़ा दुश्मनों को उनकी औकात दिखा रहा है …!

A Blog Submitted By – Shri Rajendra Sukhwal

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