या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता

नारी ब्रह्मविद्या है, श्रृद्धा है, शक्ति है, पवित्रतानारी ब्रह्मविद्या है, श्रृद्धा है, शक्ति है, पवित्रता है,कला है, कामधेनु है, अन्नपूर्णा है, सिद्धि है, विश्व की स्वर्गिक उद्भावना से ओत-प्रोत है। नारी भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर है। एक ऐसी शक्ति जिसका सर्वस्व औरों को निवेदित है। ” या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता” एवं “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता”के रुप में नारी को वैदिक काल से ही सम्मान की दृष्टि से देखा जाता रहा है। पुरुष शौर्य और शक्ति का प्रतीक है तो नारी श्रृद्धा,दया, ममता एवं सौंदर्य सरीखे कोमल मूल्यों की…..। इतिहास गवाह है कि प्रत्येक घड़ी में नारियों ने पुरुषों को परास्त मन होने से बचाया है साथ ही ज्ञान विज्ञान के आयामों में, वेदाध्ययन,शास्त्रार्थ में निपुण नारियां,पति के साथ समर भूमि में युद्ध करने जाती रही हैं। गार्गी, मैत्रेयी , अनुसुइया,सीता, सावित्री आदि मातृशक्तियों के नाम से इतिहास भरा पड़ा है।वैदिक काल से लेकर आज तक नारियों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर किया है।आज सम्पूर्ण विश्व में मातृशक्ति को अपने मूल दैवीय स्वरुप में स्वयं को लाना होगा। भौतिक जीवन के बाहरी प्रदर्शन से परे,पैसा संस्कृति के भ्रमजाल से स्वयं को बचा कर उत्कृष्ट कार्यों, गुणों से अलग पहचान बनानी होगी। बच्चों को भी वैसे ही संस्कार देने होंगे । भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत शिक्षा के साथ अध्यात्म,धर्म, दर्शन की शिक्षा की भी आज अधिक आवश्यकता है।


डॉ सरोज गुप्ता सागर ( म प्र)

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