अयोध्या में श्री राम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र में भव्य राम मंदिर की नींव का काम शीघ्र ही प्रारंभ हो जाएगा। इस तथ्य को कैसे विस्मृत किया जा सकता है कि श्रीराम जन्मभूमि को प्राप्त करने के लिए 500 साल तक संघर्ष किया गया है और अब जाकर वह शुभ अवसर आया है कि हम श्रीराम मंदिर निर्माण के सपने को साकार होते हुए देखने के इतने निकट पहुंच चुके हैं।
राजा राम की नगरी अयोध्या में बन रहे भव्य राम मंदिर सहित संपूर्ण परिसर के निर्माण पर करीब 1100 करोड़ का खर्च आंका गया है। इतनी बड़ी राशि का इंतजाम सिर्फ 42 दिन में कर लेने की एक सुन्दर योजना विश्व हिंदू परिषद ने बनायी है। इस अभियान से लाखों कार्यकर्ता जुड़ेंगे। उनका प्रयास होगा 50 करोड़ लोगों, 11 करोड़ घरों तक और सवा पाँच लाख गाँवों तक मंदिर के इतिहास को पहुँचाने का। आज की तारीख में 35 साल की उम्र वाले नौजवानों को राम जन्म भूमि के इतिहास के बारे में बहुत कम जानकारी है। और साथ ही शायद यह दुनिया का सबसे बड़ा धन संग्रह अभियान होगा। धन एकत्रित करने के लिए जनसंपर्क का कार्य विश्व हिंदू परिषद के सहयोग से 14 जनवरी को मकर संक्रांति के पावन अवसर पर शुरू होगा और 27 फरवरी माघ पूर्णिमा तक चलेगा। देश का कोई कोना नहीं छूटेगा।अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, अंडमान निकोबार, कच्छ के रण से लेकर त्रिपुरा तक कार्यकर्ता पहुंचेंगे और प्रभु श्रीराम के भक्तों से संपर्क स्थापित करेंगे।
जनसंपर्क के दौरान लाखों कार्यकर्ता गांव-गांव और मोहल्लों में जाएंगे। रामलला के भव्य मंदिर के लिए प्रभु श्री राम के भक्तों से आर्थिक सहयोग लिया जाएगा। सहयोग राशि से ही मंदिर का निर्माण होगा। खास बात है कि धन संग्रह के लिए न तो किसी से चंदा मांगा जाएगा न ही दान लिया जाएगा। बल्कि रामभक्तों से राम मंदिर निधि में स्वेच्छा से समर्पण का आग्रह किया जाएगा। संघ कार्यकर्ता घर-घर जाकर लोगों का समर्पण और सहयोग राशि लेगें। 10 रुपये, 100 रुपये और 1000 रुपये के कूपन होंगे। 2000 रुपए से ज्यादा सहयोग करने वालो को रसीद दी जाएगी। इस अभियान के कारण प्रभु श्री राम और श्री राम मंदिर का भव्य चित्र हर घर मे स्थापित होगा।
अब आप लोगों के मन में यह प्रश्न आएगा कि हमारे छोटे से सहयोग से अथवा हमारी छोटी सी समर्पण राशि से इतना भव्य विशाल मंदिर कैसे बनेगा तो मैं यहां आपको दो छोटी छोटी कथाएं याद दिलाना चाहूंगी।
एक नन्ही चिड़िया की कहानी तो आपने सुनी ही होगी। उसी चिड़िया की जो यह कहती है कि
जंगल का जब इतिहास लिखा जाएगा तो मेरा भी नाम आग बुझाने वालों में लिखा जाएगा।
तो उसी प्रकार जब श्री राम मंदिर का भव्य निर्माण होगा तो हमारा नाम भी मंदिर के निर्माण में सहयोग देने वाले लोगों में गिना जाएगा। तो कहानी कुछ इस प्रकार है
बहुत समय पहले की बात है भारत और नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्र के इलाको में ऋषि वाल्मीकि रहां करते थे वो लोगों को ज्ञान की बातें बताया करते थे। उनके शिष्यों के साथ-साथ एक छोटी चिड़िया भी उनकी बातों को बहुत ही ध्यानपूर्वक सुना करती थी एक बार की बात है की जंगल में आग लग गई और उसको देखकर मनुष्य के साथ साथ जीव जन्तु भी परेशान होकर इधर उधर भाग रहे थे कुछ समझ में नही आ रहा था पास में कोई नदी भी नही थी तालाब भी नही था उसके बावजूद एक छोटी सी चिड़िया दूर से अपनी चोंच में पानी भर के लाती और आग पर छिड़कती यह देखकर मनुष्यों और पशुओं ने छोटी चिड़िया से कहा कि क्या यह भयंकर विशाल आग तुम्हारी चोंच से लाये पानी से बुझ जायेगी ? छोटी चिड़िया ने सबसे बड़ी विनम्रता पूर्वक कहा कि मैं जानती हूं कि मेरे प्रयास से यह भयंकर आग नहीं बुझेगी परंतु जंगल का जब इतिहास लिखा जाएगा उस वक्त मेरा नाम भी आग बुझाने में सहयोग करने वालों में होगा। जिस प्रकार उस नन्ही सी चिड़िया ने जंगल में लगी आग को बुझाने का प्रयास किया था और वह सदा के लिए अमर हो गयी उसी प्रकार हम सबका नाम भी मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम मंदिर के भव्य निर्माण का जब इतिहास लिखा जाएगा तो उसको बनाने में सहयोग देने वाले लोगों में लिखा जाएगा। आप सभी के बूंद बूंद सहयोग से सागर रुपी यह विशाल कार्य संपन्न हो सकेगा। यह तो थी चिड़िया की कहानी और अब आते हैं नन्ही सी गिलहरी की कहानी पर कि कैसे एक छोटी सी गिलहरी ने भगवान श्री राम की मदद की व उनके कार्य में अपना योगदान दिया था।
कहा जाता है कि जब लंका विजय के लिए नल-नील समुद्र पर सेतु बनाने में लगे थे, तब कई भालू-वानर भी राम नाम लिखे पत्थर और पेड़ों की शाखाएं ला रहे थे। एक गिलहरी यह सब कुछ देख रही थी वह मर्यादा पुरुषोत्तम के पास आई और बोली, ‘हे भगवन् ! मैं भी आपके इस नेक काम में सहायता करना चाहती हूं।’ प्रभु ने उस गिलहरी को आज्ञा दे दी।
मगर, गिलहरी शिलाखंड नहीं उठा सकती थी। इसलिए उसने अपने लिए अपनी सामर्थ्य अनुसार काम निकाला। वह बार-बार समुद्र में स्नान करके रेत पर लोट-पोट होती और सेतु पर दौड़ जाती और सेतु पर जाकर अपने शरीर पर लगी रेत को गिरा देती। उसका यह कार्य बिना रुके चलता रहा।
गिलहरी की इस लगन को श्रीराम बड़े कौतुहल से देख रहे थे, उस छोटे जीव की ओर किसी का ध्यान नहीं था। भगवान श्रीराम ने संकेत से हनुमानजी को पास बुलाया और उस गिलहरी को लाने के लिए कहा, हनुमानजी गिलहरी को रघुनाथजी के पास लाए। प्रभु ने उस नन्हें से जीव से पूछा, तुम सेतू पर क्या रही थीं? तुमको भय नही लगता कि कपियों या रीछों के पैरों के नीचे आ सकती थीं या कोई वृक्ष अथवा शिलाखंड तुम्हारे ऊपर गिर सकता था। गिलहरी ने कहा कि आपके सेवकों के पैरों के नीचे मेरी मृत्यु हो जाए, यह तो मेरा सौभाग्य है। सेतु में बहुत बड़े-बड़े शिलाखंड और वृक्ष लगाए जा रहे हैं। ऊंची-नीची भूमि पर चलने में आपको कष्ट होगा, यह सोच कर पुल के छोटे-छोटे गड्डों में रेत भर देने का प्रयत्न कर रही थी। गिलहरी की बात सुनकर भगवान श्रीराम प्रसन्न हो गए उन्होंने अपने बाएं हाथ पर गिलहरी को बैठा लिया। जगत पालक ने उस जीव को वह आसन दिया जो किसी भक्त को कभी प्राप्त नहीं हुआ। कहते हैं इस सेवा भाव को देखकर श्रीराम ने गिलहरी की पीठ पर स्नेह से अपना हाथ फिराया। तभी से गिलहरी की पीठ पर प्रभू की अंगुलियों के चिन्ह स्वरूप में तीन श्वेत रेखाएं पीठ पर बन गईं। उसी गिलहरी की भाँति अगर हम सब भी अपनी क्षमता अनुसार भगवान श्रीराम के स्नेह का पात्र बनने के लिए मंदिर के भव्य निर्माण में सहयोग देने के लिए आगे आए तो निश्चित ही हमें भी प्रभु श्रीराम की कृपा एवं आशीर्वाद प्राप्त होगा। वैसे भी पुराणों में दान देने की एक विशेषता बताई गई है जिसमें व्यक्ति को अपने सामर्थ्य अनुसार थोड़ा ही सही किंतु दान या फिर कोई परोपकार का काम जरूर करना चाहिए। जीवन में किए गए छोटे से परोपकार या काम का भी बहुत महत्व होता है। जय श्री राम!
लेख संपादन एवं संकलन द्वारा
श्रीमती पुष्पलता अग्रवाल
श्रीमती पुष्पलता अग्रवाल लखनऊ के प्रतिष्ठित सेंट जोसेफ ग्रुप ऑफ़ इंस्टिट्यूशन की मुख्य प्रबंध निदेशक हैं तथा सामाजिक सरोकारों में लगातार अपनी सहभागिता करती रहती हैं।