कभी-कभी अपने अधिकारों को पाने के लिए अपनों से भी लड़ाई लड़नी पड़ती है. जैसे पांडवों को महाभारत का युद्ध केवल अपना अधिकार पाने के लिए लड़ना पड़ा था.
बुरे से बुरे समय में भी किसी बुरे व्यक्ति का एहसान नहीं लेना चाहिए वरना व्यक्ति ऐसे लोगों के एहसान तले दबकर हीं जीवन बिताता है. जैसे कि कर्ण ने हर प्रकार से श्रेष्ठ होने के बाद भी बुरे वक्त में धैर्य खोकर दुर्योधन को मित्र बनाकर खुद को गिरवी रख दिया.
वह व्यक्ति किंचित आपका शत्रु नहीं हो सकता जो आपको आपकी गलतियों और कमजोरियों का बार-बार स्मरण कराये अपितु वह आपका शत्रु है जो आपके गलत दिशा में बढ़ते हुए कदमों को देखकर भी मुस्कुराता रहे और आपको रोकने का प्रयास ना करे
आज अपने और पराये की परिभाषा थोड़ी बदल सी गई है। लोग सोचते हैं कि स्वजन-प्रियजन वहीँ है जो हर स्थिति में हमारा संग दें लेकिन वास्तव में सच्चे प्रियजन वही हैं जो अप्रिय कर्म से बचा लें।
दुर्योधन ने चाचा विदुर की बात मान ली होती तो महाभारत ना होता। रावण ने विभीषण की बात मानी होती तो लंका विध्वंश ना होता।
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