अधर्म का एक क्षण

अधर्म का एक क्षण

जब श्रीकृष्ण महाभारत के युद्ध पश्चात् घर लौटे तो रोष में भरी रुक्मिणी ने उनसे पूछा, “बाकी सब तो ठीक था किंतु आपने आचार्य द्रोण और भीष्म पितामह जैसे धर्मपरायण लोगों के वध में साथ क्यों दिया?”

श्री कृष्ण ने उत्तर दिया, “ये सही है की उन दोनों ने जीवन भर धर्म का पालन किया किन्तु उनके किये एक पाप ने उनके सारे पुण्यों को हर लिया”…श्री कृष्ण ने आगे कहा – “जब भरी सभा में द्रोपदी का चीर हरण हो रहा था तब ये दोनों भी वहां उपस्थित थे, और बड़े होने के नाते ये दुशासन को रोक सकते थे किंतु इन्होंने ऐसा नहीं किया, उनके इस एक पाप से बाकी धर्मनिष्ठता छोटी पड़ गई …

रुक्मिणी ने पुछा, “”और कर्ण?. वो तो अपनी दानवीरता के लिए प्रसिद्ध था, कोई भी उसके द्वार से खाली हाथ नहीं गया, उसकी क्या गलती थी?””….
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श्री कृष्ण ने कहा, “”वस्तुतः वो अपनी दानवीरता के लिए विख्यात था और उसने कभी किसी को ना नहीं कहा, किन्तु जब अभिमन्यु युद्धक्षेत्र में घायल हुआ भूमि पर पड़ा था, तो उसने कर्ण से, जो उसके पास खड़ा था, पानी माँगा, कर्ण जहाँ खड़ा था उसके पास पानी का एक गड्ढा था, किंतु कर्ण ने मरते हुए अभिमन्यु को पानी नहीं दिया, इसलिये उसका जीवन भर दानवीरता से कमाया हुआ सारा पुण्य नष्ट हो गया…बाद में उसी गड्ढे में उसके रथ का पहिया फंस गया और वो मारा गया””…..

कई बार हमारे आसपास कुछ गलत हो रहा होता है, और हम सक्षम होते हुए भी कुछ नहीं करते…सड़क दुर्घटना में घायल हुए व्यक्ति को लोग नहीं उठाते हैं…आजकल तो घायलों के तड़पने का वीडियो बनाने का चलन भी हो गया है…ऐसे क्षणों में आगे बढ़कर मदद करिए नहीं तो सारे जन्म के किए गए पुण्य कार्य नष्ट होते देर नहीं लगेगी…

आपके अधर्म का एक क्षण, सारे जीवन के कमाये धर्म को नष्ट कर सकता है…

जय श्री कृष्ण ।

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