बड़ों का आदर-सम्मान

बड़ों का आदर-सम्मान

पिता पुत्र का अनमोल रिश्ता..

एक दिन मेरे पिता ने हलवे के दो कटोरे बनाये और उन्हें मेज़ पर रख दिया

एक के ऊपर दो बादाम थे जबकि दूसरे कटोरे में हलवे के ऊपर कुछ नहीं था फिर उन्होंने मुझे हलवे का कोई एक कटोरा चुनने के लिए कहा, क्योंकि उन दिनों तक हम गरीबों के घर बादाम आना कठिन था। मैंने दो बादाम वाले कटोरे को चुना! मैं अपने बुद्धिमान विकल्प/निर्णय पर स्वयं को बधाई दे रहा था और जल्दी-जल्दी मुझे मिले दो बादाम वाला हलवा खा रहा था परंतु मेरे आश्चर्य का ठिकाना नही था, जब मैंने देखा कि मेरे पिता वाले कटोरे के नीचे चार बादाम छिपे थे! बहुत पछतावे के साथ मैंने अपने निर्णय में शीघ्रता करने के लिए स्वयं को डांटा।

मेरे पिता मुस्कुराए और मुझे यह स्मरण रखना सिखाया कि, आपकी आँखें जो देखती हैं, वह सदा सच नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि यदि आप स्वार्थ की आदत को अपनी आदत बना लेते हैं तो आप जीत कर भी हार जाएंगे।

अगले दिन, मेरे पिता ने फिर से हलवे के 2 कटोरे पकाए और टेबल पर रक्खे। एक कटोरा जिसके शीर्ष पर दो बादाम और दूसरा कटोरा जिसके ऊपर कोई बादाम नहीं था, फिर से उन्होंने मुझे अपने लिए कटोरा चुनने को कहा।

इस बार मुझे कल का संदेश स्मरण था इसलिए मैंने शीर्ष पर बिना किसी बादाम वाली कटोरी को चुना परंतु मेरे आश्चर्य करने के लिए इस बार इस कटोरे के नीचे एक भी बादाम नहीं छिपा था फिर से, मेरे पिता ने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा, “मेरे बच्चे! आपको सदा अनुभवों पर भरोसा नहीं करना चाहिए क्योंकि कभी-कभी जीवन आपको धोखा दे सकता है या आप पर चालें खेल सकता है। स्थितियों से कभी भी अधिक परेशान या दु:खी न हों, बस अनुभव को एक सीख के रूप में समझो जो किसी भी पाठ्यपुस्तकों से प्राप्त नहीं किया जा सकता है।

तीसरे दिन, मेरे पिता ने फिर से हलवे के दो कटोरे पकाए। पहले दो दिन की ही तरह, एक कटोरे के ऊपर दो बादाम और दूसरे के शीर्ष पर कोई बादाम नहीं। मुझे उस कटोरे को चुनने के लिए कहा जो मुझे चाहिए था लेकिन इस बार, मैंने अपने पिता से कहा, *पिताजी! आप पहले चुनें। आप परिवार के मुखिया हैं और आप परिवार में सबसे अधिक योगदान देते हैं। आप मेरे लिए जो अच्छा होगा वही चुनेंगे

मेरे पिता मेरे लिए खुश थे। उन्होंने शीर्ष पर दो बादाम के साथ कटोरा चुना लेकिन जैसा कि मैंने अपने कटोरे का हलवा खाया, कटोरे के हलवे के एकदम नीचे आठ बादाम और थे।

मेरे पिता मुस्कुराए और मेरी आँखों में प्यार से देखते हुए उन्होंने कहा मेरे बच्चे, तुम्हें स्मरण रखना होगा कि जब तुम भगवान पर सब कुछ छोड़ देते हो तो वे सदा तुम्हारे लिए सर्वोत्तम का चयन करेंगे और जब तुम दूसरों की भलाई के लिए सोचते हो, अच्छी चीजें स्वाभाविक तौर पर आपके साथ भी हमेशा होती रहेंगी

बड़ों का सम्मान करते हुए उन्हें प्रथम अवसर व स्थान दें। बड़ों का आदर-सम्मान करोगे तो कभी भी खाली हाथ नही लौटोगे। अनुभव, दृष्टि का ज्ञान व विवेक के साथ सामंजस्य हो जाये, बस यही सार्थक जीवन है

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