09 अगस्त काकोरी कांड दिवस पर विशेष –

09 अगस्त काकोरी कांड दिवस पर विशेष –

काकोरी कांड के लिए अंग्रेजों ने बिस्मिल, अशफाक, लाहिड़ी और रोशन सिंह को फांसी दे दी थी …..

09 अगस्त 1925 को श्री चंद्रशेखर आजाद, श्री राम प्रसाद (तोमर) बिस्मिल, मोहम्मद अशफाक उल्ला खान, श्री राजेंद्र लाहिड़ी और ठाकुर रोशन सिंह जी सहित 10 क्रांतिकारियों ने लखनऊ से 14 मील दूर काकोरी और आलमनगर के बीच ट्रेन में ले जाए जा रहे सरकारी खजाने को लूटकर अंग्रेजों को बड़ा झटका दिया था।

आज़ादी के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले देश के अमर सपूत राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक़ उल्ला खान और रोशन सिंह को कोटि-कोटि नमन।

कितने झूले थे फांसी पर और कितनों ने गोली खाई थी
क्यों झूठ बोलते हो साहब, आज़ादी चरखे से पायी थी…

आजादी के संघर्ष में ऐसे सात लाख से ज्यादा क्रांतिकारी देशभक्त शहीद हुए थे और अनेकों लापता हुए न जाने कितनों ने तन मन धन सहित अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया था भारत की आजादी के महायज्ञ में ….तो फिर इसका श्रेय अंग्रेजों के आगे पीछे घूम रहे राजनीति कर रहे लोगों को कैसे दिया जा सकता है …ये उन क्रांतिकारी देशभक्तों का अपमान होगा जो मैं किसी भी सूरते हाल में नहीं कर सकती…


इन वीर शहीदों ने बिना किसी स्वार्थ के आजादी के इस महा संग्राम में अपने जीवन और प्राणों की आहुति दे दी..

तो इसका सेहरा विलासिता पूर्ण जीवन जीने वाले नहेरू सरीखे मन और चरित्र से हल्के राजनीतिज्ञों और पक्षपात पूर्ण रवैये से भरे हुए मुस्लिम तुष्टिकरण की सीमाओं को पार करते गांधी या ऐसे ही अनेकों मौकापरस्तों को कैसे दे दूं… कोई हमारे इस कथन का विरोध करेगा भी तो कैसे करेगा इतिहास गवाह है। इतिहास हमारे साथ है, सबूत हमारे पास हैं… हम जैसों का विरोध है तो है ….इतिहास के उन पन्नो पर है जिन्होंने गांधी और नहेरू को याद कर दूसरों को भूला दिया, उन वीरों के हिस्से का भी मान सम्मान इन्हीं की झोली में डाल दिया जिन्होंने सच पूछो तो स्वतंत्रता के लिए क्या किया दिखाई भी नहीं पड़ता याद भी नहीं आता और जो किया जो दिखता है उसने मेरे देश को कभी ना भरने वाले जख्म दिए हैं जो नासूर बन गए हैं जिसने मेरे देश की नीव हिला दी जड़ें खोखली कर दीं…… उन्होंने इन वीर क्रांतिकारियों को अमर शहीदों को वो सम्मान मिलने नही दिया जिस सम्मान के वे अधिकारी थे… बल्कि उनकी फांसी के लिए उन्होंने स्वयं क्या भूमिका निभाई थी यह किसी से छुपी नहीं है….. आज़ादी के दौर में ही नही आजादी के बाद भी कुछ महत्वाकांक्षी राजपुरूषों की यही कोशिशें और साजिशें रहीं कि इतिहास सिर्फ उनके और उनके खानदान के इर्द-गिर्द सिमट कर रह गया …

मगर कुछ हम जैसे सिरफिरे भी हैं जो इन शहीदों की कहानियाँ सुनते सुनाते और गुनगुनाते बड़े हुए हैं और वही आगे आने वाली पीढ़ी को बता रहे हैं क्योंकि सच जानने का अधिकार बच्चे बच्चे को है तभी वह अपने इतिहास पर गर्व करेगा सही और गलत में फर्क करेगा

यह मेरे पर मेरी जैसी सोच रखने वाले लोगों के अपने विचार हैं जनता जनार्दन अपने विचारों के लिए स्वतंत्र है मगर अब और अधिक इतिहास की सच्चाई से देश के बच्चे बूढ़े हर उम्र के व्यक्तिओ को अनभिज्ञ नही रखा जा सकता…………

हार्दिक भैया का भी आभार जो इन शहीदों क्रांतिकारियों और आज़ादी के महान नायकों के सम्मान मे ऐसे ही विचार रखते हैं जिनको उस समय के कुछ स्वार्थी और सत्ताप्रिय व्यकियों ने इतिहास से उनका नाम मिटाकर या मिटाने की कोशिश कर के अपना और अपने चाटुकारो का नाम बड़ा कर दिया था मगर झूठ के पांव नहीं होते झूठ से पर्दा तो उठ कर रहता है तो वह उठ चुका है बस लोगों तक पहुंचाने का काम हम लोग कर रहे हैं……….

अंत में,,,,,,,

शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा।

देश की आजादी के लिए शहीद हुए वीरों को सादर श्रद्धाजंलि ……

जीत पक्की है

कुछ करना है, तो डटकर चल।
थोड़ा दुनियां से हटकर चल।
लक पर तो सभी चल लेते है,
कभी इतिहास को पलटकर चल।
बिना काम के मुकाम कैसा?
बिना मेहनत के, दाम कैसा?
जब तक ना हाँसिल हो मंज़िल
तो राह में, आराम कैसा?
अर्जुन सा, निशाना रख, मन में,
ना कोई बहाना रख।
जो लक्ष्य सामने है,
बस उसी पे अपना ठिकाना रख।
सोच मत, साकार कर,
अपने कर्मो से प्यार कर।
मिलेंगी तेरी मेहनत का फल,
किसी और का ना इंतज़ार कर।
जो चले थे अकेले
उनके पीछे आज मेले हैं।
जो करते रहे इंतज़ार उनकी
जिंदगी में आज भी झमेले है!

शहीदों के जज्बातों को नमन उनकी शहादत को नमन!

कविता के रचनाकार अनजान
साभार
संस्कार यज्ञ

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